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Monday, 13 January 2020

देवनागरी लिपि: महत्व एवं विशेषताएँ





देवनागरी लिपि: महत्व एवं विशेषताएँ
        

वैसे तो विश्व की कोई भी लिपि सभी दृष्टियों से पूर्णतः वैज्ञानिक नही हैं। लेकिन पुरी तरह वैज्ञानिक लिपि की कल्पना की जा सकती हैं। नागरी लिपि में अनेक बार सुधार करने का प्रयत्न किया गया हैं। नागरी लिपि के महत्व और विशेषताओं को निम्नलिखीत रुप में देखा जा सकता हैं।

1) वर्णमाला का वर्गीकरण:-    
विश्व की किसी भी भाषा में इतने वैज्ञानिक रुप से वर्णमाला का विभाजन या वर्गीकरण नहीं हैं। जितना वैज्ञानिक रुप में नागरी लिपि में हुआ हैं। नागरी लिपि में स्वर और व्यंजन अलग - अलग हैं। व्यंजनों का विभाजन रुप (वर्गीकरण) और अधिक वैज्ञानिक हैं। हर वर्ण का स्थान निश्चित हैं।

2) लिपि चिह्नों के नाम ध्वनि के अनुकुल:-
        देवनागरी लिपि में यह एक बहुत बड़ा. गुण हैं की, जो लिपिचिह्न जिस ध्वनि का प्रतीक हैं उसका नाम भी वहीं हैं। जैसे - अ, , , म आदि। रोमन लिपि में एैसा नहीं हैं और इसलिए इसे सिखने में बहुत कठिनाई होती हैं। रोमन लिपि में ध्वनि के अनुकुल लिपि चिह्न नही हैं। जैसे - भ् - (ह), ॅ - (व), ल्- (य)

3) एक ध्वनि के लिए एक लिपि चिह्न:-
        अच्छी या वैज्ञानिक लिपि के लिए यह गुण बहुत जरूरी हैं। इसका कारण यह हैं कि, किसी भी भाषा में उच्चारण के स्तर पर ही हर ध्वनि के लिए अलग चिह्न की बात की जा सकती हैं। अंग्रेजी में यह वैज्ञानिकता नहीं हैं। जैसे ध्वनि के लिए (K,C,Q)आदि का प्रयोग किया जाता हैं। अंग्रेजी में यह गडबडी रोमन लिपि के कारण हैं। देवनागरी में यह अवगुण देखने को नहीं मिलता। उर्दू या अंग्रेजी की तुलना में देवनागरी में यह बात बहुत कम देखने को मिलती हैं। अतः हम कह सकते हैं कि, देवनागरी में लेखन और उच्चारण में इस तरह के अवगुण बहुत कम हैं।

4) लिपि चिह्नो की पर्यापता:-
        दुनिया की अधिकांश लिपियों में चिह्न पर्याप्त नहीं हैं। जैसे अंग्रेजी में चालीस से अधिक ध्वनियाँ हैं, लेकिन 26 लिपि चिन्हों से काम चलाना पडता हैं। इस दृष्टि से नागरी और ब्राम्ही से चित्रित भारतीय लिपियाँ पर्याप्त संपन्न हैं। रोमन और उर्दू मे कई लिपि चिह्नों को मिलाकर ध्वनि लिखी जाती हैं और उर्दू में भी यहीं स्थिति हैं। इस तरह की परेशानी देवनागरी में बिलकुल नहीं हैं। इसमें पर्याप्त लिपिचिह्न हैं।

5) ह्रस्व तथा दीर्घ स्वर के लिए स्वतंञ चिह्न:-
        इस दृष्टि से रोमन और नागरी लिपि का कोई मुकाबला नहीं हैं। रोमन में ;।द्ध अक्षर से (अ) का और (आ) ही नाम लेते हैं। जैसे -
KALA- कला           KALA - काला 
KALAM - कलाम         KALAM - कालाम
        देवनागरी लिपि में ह्रस्वऔर दीर्घ स्वर के लिए अलग अलग लिपिचिह्न हैं।

6) मात्राओं का प्रयोग:-
        देवनागरी लिपि में स्वर यदि स्वतंञ रुप से आते हैं। तो पुरे लिपिचिह्न का प्रयोग होता हैं। जैसे आग’, ईद आदि। लेकिन व्यंजन के साथ (’) को छोडकर अन्य सभी स्वरों का मात्रारुप प्रयुक्त होता हैं। इसके कारण चिह्नों की संख्या तो बढ़ गई हैं। लेकिन इसमें लिखने में सुविधा होती हैं।

7) उच्चारण की दृष्टि से समान लिपिचिह्नों की आकृती की समानता:-
        वैज्ञानिकता की दृष्टि से लिपि में यह गुण भी होना चाहिए। दुनिया में कोई भी ऐसी भाषा नहीं हैं, जो इस दृष्टि से पूर्ण हो। जो रोमन लिपियों में यह गुण हैं ही नही नागरी में यह गुण सबसे अधिक हैं।

8) सुपाठ्यता:-
        हम पढ़ने के लिए लिखते हैं, इसलिए सुपाठ्याता किसी भी लिपि के लिए अनिवार्य गुण हैं। इस दृष्टिसे देवनागरी बहुत वैज्ञानिक लिपि हैं। रोमन लिपि की तरह उसे पढ़ने की परेशानी नहीं होती उर्दू में भी यह गलती बहुत बार होती हैं। इसलिए हम कह सकते हैं की, देवनागरी भारतीय लिपियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और सबसे अधिक वैज्ञानिक हैं। रोमन और उर्दू से इसकी तुलना नहीं की जा सकती।
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