स्वर वर्गीकरण
प्रायः
लोग ध्वनि, वर्ण
ओर अक्षर का एक ही अर्थ लेते हैं। किन्तु व्याकरण शास्त्र के अनुसार इनके अर्थों
में भेद होते हैं। अ,
आ, इ तथा क, ख,
ग आदिको
जब हम मुख से बोलते हैं,
तब
इसे ध्वनि कहाँ जाता हैं। इनके लिखित रूप को वर्ण कहते हैं। वर्ण को ध्वनि चिह्न भी
कहते हैं। ध्वनियों का सबसे अधिक प्राचीन वर्गीकरण स्वर और व्यंजन के रूप में
मिलता हैं। युरोप में इस प्रसंग में सर्वप्रथम प्रयास करनेवालों में डॉयोनिशस थ्रैंक्स का
नाम लिया जाता हैं। इनके अनुसार व्यंजन उन ध्वनियों को कहाँ जाता हैं, जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से किया
जाता हैं और स्वर उन ध्वनियों को कहाँ जाता हैं, जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य ध्वनि की
सहायता से किया जा सकता हैं। भारत में स्वर और व्यंजन को पारिभाषित करने का श्रेय
महाभाष्यकार पंतजलि को जाता हैं। इस संदर्भ में वे कहते हैं-
‘‘स्वयं
राजन्ते स्वरा अण्वग भवति व्यंजनमिति।’’
अर्थात
स्वर स्वतंत्र हैं और व्यंजन उनपर आधारित हैं। इस प्रकार ध्वनियों को स्वर और
व्यंजन इन दो भागों में बाँटा जा सकता हैं या विभाजित किया जाता हैं।
स्वर की परिभाषा:
विभिन्न
विद्वानों ने स्वर की परिभाषा अपने- अपने ढंग से दी हैं।
डा. देवेंन्द्रनाथ शर्मा के अनुसार - ‘‘स्वर
वे ध्वनियाँ हैं,
जिनका उच्चारण करते समय निःश्वास में कही कोई अवरोध नहीं होता।’’
डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार -‘‘स्वरवह
ध्वनि हैं,
जिसके उच्चारण में हवा अबाध गति से मुख विवर से निकल जाती हैं।’’
देवीशंकर द्विवेदी ने स्वर की परिभाषा इस
प्रकार दी हैं-‘‘जिन
ध्वनियों के उच्चारण में फेफडों से आनेवाली वायूमुख विवर से अबाध गति से प्रवाहीत
हो जाती हैं और वायू मार्ग में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं होती हैं, न किसी प्रकार का विक्षोभ उत्पन्न किया
जाता हैं। उसे स्वर कहते हैं।’’
इसका
तात्पर्य यह हुआ कि,
स्वरों
के उच्चारण में कोई भी दो उच्चारण अवयव आपस में नहीं मिलते जिससे मुख से वायू के
निकलने में कोई बाधा पडे। स्वर ध्वनियों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
1)
स्वरों
का उच्चारण बिना किसी ध्वनि की सहायता से स्वतंञ रूप से किया जाता हैं ।
2)
स्वरों
का उच्चारण देर तक किया जा सकता हैं।
3)
स्वरों
के उच्चारण में निकलनेवाली वायू में कहीं कोई अवरोध नहीं होता।
4)
निकलने
वाले वायू में किसी प्रकार का संघर्ष नहीं होता।
5)
स्वर
आक्षरीक होते हैं।
6)
स्वरों
के द्वारा अक्षर का निर्माण होता हैं।
7)
स्वरों
के उच्चारण में मुख विवर में अनुगुँज पैदा होती हैं।
स्वर वर्गीकरण
स्वर ध्वनियाँ कभी मुँख विवर में और कभी नासिका विवर
में अनुगुँज पैदा करती हैं। इसके उच्चारण के लिए जीभ, कौआ (अलिजिह्वा), होंठआदि का सहारा लिया जाता हैं। इन सभी दृष्टियों
से स्वरों का निम्नलिखित आधारोंपर वर्गीकरण किया गया हैं।
१) जिह्वा के भाग के आधार पर स्वरों का
वर्गीकरण:
उच्चारण
अवयव कीदृष्टि से जिह्वा के अनेक भाग हैं। जिसे जिह्वा अग्र, जिह्वामध्य, जिह्वा पश्च, जिह्वा मूल, इन भागों में विभाजीत किया जाता हैं। इन
में से जो ही भाग उपर उठकर भीतर से आती हुई हवा को प्रभावित करता हैं। उस आधार पर
स्वरों के कई भेद हो सकते हैं। जैसे –
1)
अग्र
स्वर:-जिन स्वरों का उच्चारण जिह्वा के अग्र भाग से होता हैं। इन्हें अग्र स्वर
कहतेहैं। उदा. इ, ई, ए,
ऐ।
2) मध्य
स्वर:-जिन स्वरों को उच्चारण में जिह्वा का मध्यभाग वायू को प्रभावित करता तथा
मध्य स्वरों का निर्माण होता हैं।
उदा. ‘अ’।
3) पश्च स्वर:-जिन स्वरों का उच्चारण जिह्वा
के पश्च भाग से होता हैं। उन्हे पश्च स्वर कहते
हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित स्वर आते
हैं।
जैसे
- उ, ऊ, ओ,
औ, आ।
२)
जिह्वा की ऊँचाई के आधार पर स्वरों का
वर्गीकरण:-
वायु
जब मुखविवर से बाहर निकलती हैं,
तब
उसे बाधा का सामना तो नहीं करना पड़ता,
परंतु फिर भीजिह्वा को उपर उठाकर वायू के मार्ग को कही संकीर्ण और कहीबड़ाअवश्य
करना पडता हैं। इस दृष्टि से मुख विवर कि स्थिति चार प्रकार की होती हैं। फलस्वरुप
इस आधारपर स्वर भी चार प्रकार के होते हैं।
1) संवृत
स्वर:-जिन स्वर ध्वनियोंके उच्चारण में जिह्वा बिना किसी बाधा के पर्याप्त तालू की
ओर उँची उठ जाती हैं,
तथा
मुख विवर के उपरी भाग और जीभ के बीच बहुत कम दुरी होती हैं । ऐसी स्थिति में जिन
स्वरों का उच्चारण होता हैं,
उन्हे
संवृत स्वर कहते हैं। इस अवस्था में मुख विवर प्रायः बंद रहता हैं। इसके अंतर्गत
निम्नलिखित स्वर आते हैं।
जैसे - इ, ई,
उ, ऊ।
2) अर्धसंवृत
स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा और मुख विवर के उपरीभाग की दूरी संवृत
स्वर की अपेक्षा अधिक रहती हैं।ऐसे स्वरों को अर्थसंवृत स्वर कहते हैं। इसके
अंतर्गत - ए, ओ स्वर आते हैं।
3) विवृत
स्वर:-विवृत का अर्थ हैं खुला अर्थात जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा एकदम निचे
की ओर आ जाती हैं,
और
जिह्वा तथा मुख विवर के उपरी भाग के अधिक से अधिक दुरी रह जाती हैं, तब उन्हे विवृत्त स्वर कहते हैं, इस अवस्था में मुख विवर पूर्ण रूप से खुला रहता हैं इसके अंतरर्गत अ, आ स्वर आते हैं।
4) अर्ध
विवृत स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में विवृत स्वर की अपेक्षा जिह्वा और मुख विवर
के उपरी भाग की दूरी कम हो जाती हैं,
ऐसी
स्थिति में जिन स्वरों का उच्चारण होता हैं उन्हें अर्ध विवृत स्वर कहते हैं। इसके
अंतर्गत ऐ, औ
स्वर हैं।
३)
ओष्ठों की आधारपर स्वरों का वर्गीकरण:-
स्वर
ध्वनियों के उच्चारण में होठ भी अपनी भूमिका निभाते हैं। स्वरों का उच्चारण करते
समय इनके आकार में परिवर्तन आ जाता हैं,
कभी
ये गोलाकार स्थिति में आ जाते हैं,
तो
कभी अगोलाकार होते जाते हैं,
इस
आधारपर स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) वृत्तमुखी
स्वर / गोलक स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में होंठों का आकार गोल हो जाता हैं, उन स्वरों को वृत्तमुखी, गोलक या गोलित स्वर कहते हैं। ये स्वर
निम्नलिखित हैं-
जैसे - उ, ऊ,
ओ, औ,
आँ।
2) अवृत्तमुखी
स्वर / अगोलीत
स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ स्वभाविक रुप से खुले रहते हैं, ऐसी स्थिति में जिन स्वरोंका उच्चारण होता
हैं, उन्हे
अवृत्तमुखी स्वर कहते हैं।ये स्वर निम्नलिखित हैं।
जैसे - अ, आ,
इ, ई,
ए, ऐ।
४)
मात्रा भदे के आधापर स्वरों का वर्गीकरण:-
स्वरों
के उच्चारण में जो काल या समय लगता हैं,
उसे
मात्रा काल या कालमान कहते हैं,
कालमान
के आधारपर स्वरों के चार भेद किए जाते हैं-
1) ह्रस्व
स्वर (लघुस्वर):-जिन स्वरों के उच्चारण में समय कम लगता हैं, उन्हे ह्रस्व स्वर कहाँ जाता हैं। यह स्वर
निम्नलिखित हैं।
जैसे - अ, इ,
उ
।
2) दीर्घ
स्वर (गुरू स्वर):-जिन स्वरों के उच्चारण में समय अधिक लगता हैं, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
जैसे - आ, ई,
ऊ, ए,
ऐ, ओ,
औ
।
3) ह्रस्वार्द्ध
स्वर:-इन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा कम समय लगता हैं, इसलिए इन्हेंह्रस्वार्द्ध स्वर कहाँ जाता
हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित स्वर आते हैं-
जैसे - अऽ, एँ ।
4) प्लूत
स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक कालमान या समय लगता हैं, उन्हे प्लूत स्वर कहते हैं। यह स्वर लेखन
में नहीं हैं, यह
किसी को पुकारने के काम आता हैं।
जैसे - ॐ का ‘ओ’
स्वर
५)
अलिजिह्वा (कौए) कि स्थिति के आधारपर
स्वरों का वर्गीकरण:-
अलिजिह्वा
या कौए की स्थिति के आधारपर स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) मौखिक
स्वर (निरनुनासिक स्वर):-जिन स्वरों के उच्चारण में अलिजिह्वा टेढी होकर नाक के
छिद्र को बंद कर देती हैं,
और
वायू केवल मुखविवर से बाहर निकलती हैं,
ऐसीस्थिति
में जिन स्वरों का उच्चारण होता हैं उन्हे मौखिक स्वर कहते हैं। प्रायः सभी स्वर
मौखिक होते हैं।
जैसे - अ, आ,
इ, ई,
उ, ऊ,
ए, ऐ,ओ, औ,
।
2) अनुनासिक
स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में अलिजिह्वा निचे लटककर नासिका विवर को खोल देती
हैं, तथा
वायु नासिका विवर एवं मुख विवर दोनों से निकलती हैं, ऐसी स्थिति में जिन स्वरों का उच्चारण हो
जाता हैं, उन्हे
अनुनासिक स्वर कहते हैं। सभी स्वरों के अनुनासिक रुप ही मिलते हैं।
जैसे - अँ, आँ,
इं, ईं,
उँ, ऊँ,
एं, ऐं,
ओं, औं ।
६)
जिह्वा की चलता या अचलता के आधारपर स्वरों
का वर्गीकरण:-
स्वरों
का उच्चारण करते समय जीभ कभी एक स्थानपर ही स्थिर रहती हैं, और कभी एक स्वर स्थिति से दुसरी स्वर
स्थिति तक चली जाती हैं,
इस
आधार पर स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) मूल
स्वर:-जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ एक स्थानपर स्थिर रहती हैं, अर्थात स्वर का उच्चारण करते समय जीभ अचल
रहती हैं। ऐसी स्थिति में जिन स्वरोंका उच्चारण होता हैं, उन्हे मूल स्वर कहते हैं।
जैसे - अ, इ,
ड।
2) संयुक्त
स्वर:-इन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा एक स्वर स्थिति से दुसरे स्वर स्थिति तक
पहुँच जाती हैं, इसके
अंतर्गत निम्नलिखित स्वर आते हैं।
जैसे - अ
+अ
= आ
इ +इ
= ई
उ
+उ
= ऊ
अ
+ई
= ऐ
अ
+उ
= औ
७)
स्वर तंत्रियों की स्थिति के आधारपर
स्वरों का वर्गीकरण:-
ध्वनियों
का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियाँ कभी एक दुसरे के पास आती हैं, और कभी एक दुसरे से दुर रहती हैं। पहली
स्थितिवाली ध्वनियों को घोष और दुसरी स्थिति वाली ध्वनियों को अघोषध्वनि कहते हैं।
इस आधारपर स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) घोष
स्वर:-घोष स्वरों के उच्चारण में स्वर तंत्रियाँ पास - पास रहती हैं, और उनमें हलका सा नाद या कंप होता हैं।
प्रायः सभी स्वर घोष होते हैं।
जैसे - अ, आ,
इ, ई,
उ, ऊ,
ए, ऐ,
ओ, औ ।
2) अघोष
स्वर:-संसार की कुछ भाषाओं में अघोष स्वर भी देखने को मिलते हैं, इनके उच्चारण में स्वर तंत्रिया बहुत पास
नहीं रहती। इसलिए इनके उच्चारण में घर्षण नही होता। यह स्वर अवधि भाषा में मिलते
हैं।
जैसे
- जाइत का - ‘इ’
स्वर
होऊत का - ‘ऊ’
स्वर
८)
सजातियता और विजातियता के आधार पर स्वरों
का वर्गीकरण:-
कभी
- कभीसाथ - साथ आनेवाले स्वर एक जैसे या एक जाति के होते हैं, और कभी - कभी एक से अधिक जाति के। इस आधारपर
स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) सजातिय
स्वर:-जब एक प्रकार से उच्चरित होनेवाले स्वर एक साथ आते हैं, तब उन्हे सजातिय स्वर कहते हैं। जैसे -
अ,
आ,
इ,
ई,
उ,
ऊ।
2) विजातिय
स्वर:-इसमें विभिन्न स्थान से विचलीत होनेवाले स्वर पास - पास रहते हैं।
जैसे
–अ,ए, आ,ऐ, इ,ओ।
९)
मुखपेशियों की शिथिलता या दृढता के आधारपर
स्वरों का वर्गीकरण:-
इस
आधार पर स्वरों के दो भेद होते हैं।
1) शिथिल
स्वर:-इन स्वरों के उच्चारण में मुख की मांस पेशिया प्रायः शिथिल रहती हैं, इसके अंतर्गत निम्नलिखित स्वर आते हैं।
जैसे - अ, इ,
उ।
2) दृढ
स्वर:-इन स्वरों के उच्चारण में मुख की माँस पेशिया दृढ रहती हैं। इसके अंतर्गत
निम्नलिखित स्वर आते हैं
जैसे - आ, ई,
ऊ, ए,
ऐ, ओ,
औ
।
दीर्घ स्वर दृढ स्वर कहलाते हैं।
Nice information ...Thanks sir
ReplyDeleteThanku sir nice information
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