व्यंजन वर्गीकरण
ध्वनियों
को दो वर्गों में विभाजित किया गया हैं। (1)
स्वर
(2) व्यंजन।
व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं, जो स्वरों की सहायता से बोली जाती हैं।
व्यंजन की आधुनिक परिभाषा इस प्रकार दी गई हैं। व्यंजन वह ध्वनि हैं, जिसके उच्चारण मे वायु अबाध गति से नहीं
निकल पाती वह वाग्यंञ में कहीं न कहीं बाधीत होती हैं, कभी पूर्ण रुप से अवरूध्द होकर, कभी,
संकीर्ण
मार्ग से घर्षण करके,
कभी
जीभ की नोक से वर्त्स्य में रूककर बाहर निकलती हैं।
व्यंजन
के उच्चारण में वायु पूर्ण या अपूर्ण अवरोध के बाद ही बाहर निकलती हैं।
डा कपिलदेव द्विवेदी व्यंजन की परिभाषा
देते हुए लिखते हैं – “व्यंजन
वह ध्वनि हैं, जिसके
उच्चारण में फेफडों से आने वाली वायू स्वरतंत्री या मुखमार्ग में कहीं पूर्णतः
रोकी जाती हैंया अत्यंत संकीर्ण मार्ग से निकल जाती हैं ।”
व्यंजन
में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
1)
व्यंजन
के उच्चारण में कही न कही स्वर से सहायता लेनी पडती हैं। स्वर का उच्चारण चाहे
कितना हल्का क्यों न हो परंतु वह होता अवश्य हैं।
जैसे
- स, श, ष जैसे संघर्षी व्यंजन इसका अपवाद हैं।
2)
व्यंजन
का उच्चारण देर तक नहीं किया जा सकता।
3)
व्यंजन
के उच्चारण में वायु के बाहर निकलने में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध अवश्य होता हैं।
4)
प्रायः
सभी व्यंजन सामान्यतः अनाक्षरिक होते हैं। अर्थात व्यंजन अक्षर का निर्माण नहीं कर
सकते।
5)
व्यंजन
स्वतंञ रुप से अधिक देर तक नहीं बोले जा सकते। उन्हे जोर से बालने के लिए स्वर की अवश्यकता
होती हैं।
6)
व्यंजनों
का उच्चारण स्थान निश्चित होता हैं।
व्यंजन वर्गीकरण के आधार
व्यंजन
वर्गीकरण के निम्नलिखित आधार हैं।
1)
उच्चारण प्रयत्न के आधारपर व्यंजनों का
वर्गीकरण:-
इस
आधार पर व्यंजनों के निम्नलिखित भेद होते हैं-
1)
स्पर्श
व्यंजन:-
स्पर्श व्यंजन उन व्यंजनों को कहते हैं। जिनके उच्चारण में दो उच्चारण अवयव
एक दुसरे को स्पर्श करते हुए बाहर आती हुई वायू का पूर्ण रुप से अवरोध करते हैं।
इसके बाद दोनो उच्चारण अवयव अलग होकर वायू को बाहर निकल जाने देते हैं, इसे वायू का आगमन, अवरोधन और स्फोटन कह सकते हैं। इनके
उच्चारण में किन्ही दो उच्चारण अवयवों का स्पर्श होता हैं। इसलिए इन व्यंजनों को स्पर्श
व्यंजन कहाँ गया हैं। स्पर्श व्यंजन निम्नलिखित हैं। जैसे -
‘क’ वर्ग
- क, ख,
ग, घ।
‘ट’ वर्ग
- ट, ठ, ड,
ढ।
‘त’ वर्ग
- त, थ, द,
ध।
‘प’ वर्ग
- प, फ, ब,
भ।
2)
स्पर्शसंघर्षी
व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में पहले चरण में वायू उच्चारण स्थान तक पहुँचती
हैं। दुसरे चरण में उच्चारण अवयवों का स्पर्श होता हैंऔर सितरें चरण मे दोनों
उच्चारण अवयवों के बीच से वायू संघर्ष करके
बाहर निकलती हैं और स्पर्शसंघर्षी ध्वनियों का उच्चारण हो जाता हैं।
जैसे - ‘च’ वर्ग - च,
छ, ज,
झ।
3)
संघर्षी
व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव एक - दुसरे के इतने पास आते
हैं कि, वायू
को उनके बीच से संघर्ष करके बाहर निकलना पडता हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित
ध्वनियाँ आती हैं।
जैसे - ष, श,
स, ह।
क़,
ख़, ग़,
ज़, फ़।
4)
अनुनासिक
व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में हवा मुख और नासिका दोनों विवरों से बाहर निकलती
हैं। इनकें उच्चारण में पहले वायू के निर्गमन में अवरोध होता हैं। फिर वह नासिका
और मुख दोनों विवरों से निकलती हैं। और अनुनासिक ध्वनियों का या व्यंजनों का
उच्चारण हो जाता हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित ध्वनियाँ आती हैं। जैसे - ङ, ञ,
ण, न,
म।
5)
पार्श्विक
व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में मुख के मध्य भाग में दो उच्चारण अवयव मिलकर
वायू का अवरोध करते हैं। किन्तु वायु एक पार्श्व या दोनों पार्श्वों से निकलती
हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित ध्वनि आती हैं। जैसे - ‘ल’
6)
उत्क्षिप्त
व्यंजन:-
उत्क्षिप्त व्यंजनों के उच्चारण में जीभ की नोक उपर उठकर झटके के साथ
मुर्धा को छुकर वापस आ जाती हैं और उत्क्षिप्त व्यंजनों का उच्चारण हो जाता हैं।
इसके उच्चारण में वायू का अवरोध नहीं होता। जैसा की स्पर्श व्यंजनों के उच्चारण
में होता हैं । इसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यंजन आते हैं-
उदा. ‘ड’,
‘ढ’।
7)
कंपनजात
व्यंजन:-
इसके उच्चारण में जिह्वा की नोक तालू को छुती हैं, और उसमें कंपन भी होता हैं। इसके अन्तर्गत
‘र’ व्यंजन आता हैं।
8)
संघर्षहीन
सप्रवाह व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में वायू के निकलने में किसी प्रकार का संघर्ष
या घर्षण नही होता। इन व्यंजनों के उच्चारण में कोई भी दो उच्चारण अवयव एक दुसरे का
स्पर्श नहीं करते। इसके अन्तर्गत ‘य’ और ‘व’ व्यंजन आते हैं। इन्हें अर्धस्वर भी कहाँ
जाता हैं, और
व्यंजन भी कहाँ जाता हैं।
2.
उच्चारण
स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
ध्वनियों
का उच्चारण प्रयत्न विशेष से किया जाता हैं। यह प्रयत्न किसी विशेष स्थान पर लगाना
पड़ता हैं। व्यंजनों के उच्चारण में स्थान का बहुत महत्व हैं। इन स्थानों पर वायु
को या तो पूर्ण रुप से रूकना पडता हैं या अपूर्ण रुप से। उच्चारण स्थान के आधारपर
व्यंजनों के निम्नलिखित भेद होते हैं-
1)
स्वरयंत्रमुखी
/ स्वरयंत्रस्थानिय / काकल्य व्यंजन:-
स्वरयंत्रमुखी ध्वनियाँ उन ध्वनियों को कहते
हैं, जिनका
उच्चारण स्वरयंत्रमुख से होता हैं। इसके अंतर्गत ‘ह’
व्यंजन
आता हैं।
2)
अलिजिव्हिय
व्यंजन / जिह्वामूलिय व्यंजन:-
इन व्यंजनों का उच्चारण जिह्वामूल या अलिजिह्वा से
होता हैं। इसके उच्चारण के लिए जिह्वा मूल को पिछे ले जाकर वायुमार्ग को संकीर्ण
कर देते हैं। इसके अंतर्गत ‘क’ ध्वनि आती हैं।
3)
कोमल
तालव्य / कंठ्य व्यंजन:-
ये ध्वनियाँ कोमल कंठ से उच्चरित होती हैं। इसके उच्चारण
में जीभ के पिछले भाग का पहले कोमलतालू से स्पर्श कराके, वायु का अवरोध करके, फिर उसका उन्मोचन करते हैं। इसके अंतर्गत ‘क’
वर्ग
अर्थात - क, ख, ग,
घ, व्यंजन आते हैं।
4)
मूर्धन्य
व्यंजन:-
इस वर्ग की ध्वनियों का उच्चारण मुर्धा से होता हैं। जिह्वा और मुर्धा के
सहारे वायु को रोककर फिर उसे बाहर निकलने दिया जाता हैं। इसके अंतर्गत ट वर्ग - ट, ठ,
ड, ढ,
ण, व्यंजन आते हैं।
5)
कठोर
तालव्य व्यंजन:-
कठोर तालव्य व्यंजनों का उच्चारण कठोर तालू से होता हैं। हिन्दी का
‘च
वर्ग’ अर्थात
च, छ, ज,
झ
व्यंजन इसी वर्ग आते हैं। ‘य’ और ‘ष’ का उच्चारण इसी स्थान से होता हैं।
6)
वर्त्स्य
व्यंजन:-
इस वर्ग के व्यंजनों का उच्चारण मसूढ़े या वर्त्स के स्थान से होता हैं। जीभवर्त्स
के पास ले जाकर पहले वायू का अवरोध करके इस वर्ग के व्यंजनों का उच्चारण किया जाता
हैं। इसके अन्तर्गत ‘न’, ‘ल’,
‘स’ और ‘ज’ ध्वनियाँ आती हैं।
7)
दंत्य
व्यंजन:-
इन व्यंजनों का उच्चारण दंत्य स्थान से होता हैं, जीभ की नोक को दातों से स्पर्श कराकर पहले
वायु को रोकते हैं फिर जीभ को उठाकर वायुको उन्मोचीत करते हैं। इस प्रकार दंत्य
व्यंजनों का उच्चारण हो जाता हैं। त,
थ, द,
ध
व्यंजन इसके अंतर्गत आते हैं।
8)
ओष्ठ्य
व्यंजन:-
इस वर्ग के व्यंजनों का उच्चारण स्थान दोनों होंठ हैं। इनके उच्चारण के
लिए भीतर से आनेवाली वायु को दोनों होठों से रोका जाता हैं और फिर वायु को बाहर
निकलने दिया जाता हैं। इसप्रकार इस वर्ग के व्यंजनों का उच्चारण हो जाता हैं। इसके
अंतर्गत प, फ,
ब, भ, म
व्यंजन आते हैं।
3.
प्राणशक्ति
के आधारपर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
प्राण
- शक्ति का अर्थ हैं,
वायू
या श्वास की शक्ति। ध्वनियों के उच्चारण में वायू शक्ति की अवश्यकता होती हैं। कभी
वायू कम तो कभी अधिक मात्रा में लगती हैं,
इस
आधार पर व्यंजनों के दो भेद किए गए हैं।
१) अल्पप्राण व्यंजन:-
जिन व्यंजनों के
उच्चारण में प्राणवायू या श्वास की मात्रा कम होती हैं उसे अल्पप्राण व्यंजन कहा
जाता हैं। अल्पप्राण व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग की पहली, तिसरी और पाँचवी ध्वनि आती हैं। इसके
अंतर्गत निम्नलिखित व्यंजन आते हैं।
क, ग,
ङ।
च,ज,ञ।
ट, ड,
ण।
त, द,
न।
प, ब,
म।
य, र,
ल, व,
श, स।
2)
महाप्राण
व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में वायु अधिक मात्रा में लगती हैं। ऐसे व्यंजनों
को महाप्राण व्यंजन कहते हैं। महाप्राण व्यंजन निम्नलिखित हैं-
ख, घ।
छ, स।
ठ, ढ।
थ, ध।
प, भ।
ष, ह।
प्रत्येक
वर्ग की दुसरी और चौथीध्वनि महाप्राण होती हैं।
4.
स्वरंतंत्रियों
के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
ध्वनि
का उच्चारण करते समय बाहर निकलनेवाली वायू का उच्चारण के लिए सहारा लेना पडता हैं।
उसमें स्वरतंत्रिया बहुत अधिक सहायक होती हैं। अवश्यकता के अनुसार कभी वे पास -
पास रहती हैं, और
वायु के निकलते समय उनमे एक प्रकार का नाद या कंप होता हैं ।कभी वे एक दुसरे से
दुर रहती हैं, और
भीतर से आनेवाली वायू का उनपर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। यदि स्वरतंत्रियाँ दुर
- दुर रहती हैं तो अघोष और पास - पास रहती हैं तो घोषध्वनि उत्पन्न होती हैं। इस
आधारपर व्यंजनों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता हैं।
1)
अघोष
व्यंजन:-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतंत्रियाँ दुर - दुर रहती हैं तथावायु के
बाहर निकलते समय उनमें नाद या कंप नहीं होता। ऐसी ध्वनियों को अघोष व्यंजन कहते
हैं। इसके अन्तर्गत प्रत्येक वर्ग की पहली और दुसरी ध्वनि आ जाती हैं। अघोष व्यंजन
निम्नलिखित हैं। जैसे -
क, ख।
च, छ।
ट, ठ।
त, थ।
प, फ।
ष, श।
2)
घोष
/ सघोष व्यंजन:-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर तंत्रियाँ पास - पास रहती हैं।
तथा उनके बीच से बाहर आनेवाली वायू को थोडा संघर्ष करना पड़ता हैं। इस संघर्ष के
कारण स्वर तंत्रियों में थोडा नाद या कंप होता हैं, ऐसी ध्वनियों को घोष व्यंजन कहते हैं।
वर्गीय ध्वनियों के तिसरे,
चौथे
और पाँचवे व्यंजन घोष व्यंजन होते हैं। घोष व्यंजन निम्नलिखित हैं। जैसे -
ग, घ,
ङ।
ज, झ,
ञ।
ड, ढ,
ण।
ध, द,
न।
ब, भ,
म।
5.
संयुक्तता
तथा असंयुक्तता के आधारपर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
इस
आधार पर व्यंजनों के दो भेद होते हैं-
1)
संयुक्त
व्यंजन:-
जब एक से अधिक व्यंजन एक साथ आते हैं और उनके बीच के स्वर का लोप हो जाता
हैं, तब
उन्हे संयुक्त व्यंजन कहते हैं। संयुक्त व्यंजनों के दो भेद होते हैं।
।) संयुक्त व्यंजन -
संयुक्त व्यंजन में
विभिन्न प्रकार के व्यंजन एक - दुसरे में मिलते हैं।
जैसे - प +र = प्र।
क +र = क्र।
।।) द्वित्व व्यंजन:-
जब
कोई व्यंजन अपनेही रुप के साथ मिल जाता हैं,
और
उनके बीच का स्वर लुप्त हो जाता हैं,ऐसे
व्यंजनों को द्वित्व व्यंजन कहते हैं। जैसे - क् +क = क्क
2)
असंयुक्त
व्यंजन:-
जब व्यंजन अकेले आता हैं,
तो
उसे असंयुक्त व्यंजन कहते हैं। हिन्दी भाषा के सभी व्यंजन असंयुक्त व्यंजन हैं।
जैसे -
क, ख,
ग, घ,
ङ,
च, छ,
ज, झ,
ञ,
ट, ठ, ड,
ढ, ण,
त, थ,
द, ध, न,
प, फ, ब,
भ, म,
य, र,
ल, व,
ष,श, स,
ह,।
6.
उच्चारण
शक्ति के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
उच्चारण
शक्ति के आधार पर व्यंजनों के दो भेद होते हैं।
1)
अशक्त
व्यंजन:-
अशक्त व्यंजनों के उच्चारण में मुख की माँसपेशियाँ शिथिल रहती हैं, इसके अन्तर्गत वर्गीय ध्वनियों की पाँचवी ध्वनि
अर्थात -
ङ, ञ,
ण, न,
म तथा
य, र,
ल, व,
स
ध्वनियाँ इसीके अन्तर्गत आती हैं।
2)
सशक्त
/ बलि व्यंजन:-
इन व्यंजनों के उच्चारण में मुख की माँस पेशियाँ दृढ कसी हुई रहती
हैं, इसके
अन्तर्गत प्रत्येक वर्ग की पहली,
दुसरी, तिसरी और चौथी ध्वनियाँ आ जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं।
जैसे
- क, ख,
ग, घ।
च,
छ, ज,
झ।
ट,
ठ, ड,
ढ।
त,
थ, द,
ध।
प,
फ, ब,
भ।
ष,
ह।
7.
अलिजिव्हा
(कौए) के आधारपर व्यंजनों का वर्गीकरण:-
अलिजिव्हा
की स्थिति के आधार पर व्यंजनों के दो भेद होते हैं।
1)
मौखिक
व्यंजन:-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अलिजिह्वा नाक के छिद्र को बंद रखती हैं, तथा वायू मुखविवर से बाहर निकलती हैं। ऐसी
स्थिति में जिन व्यंजनों का उच्चारण होता हैं। उन्हे मौखिक व्यंजन कहते हैं।
अनुनासिक व्यंजनों को छोडकर अन्य सभी व्यंजन इसके अन्तर्गत आते हैं। ये व्यंजन
निम्नलिखित हैं।
जैसे
- क, ख,
ग, घ।
च,
छ, ज,
झ।
ट,
ठ, ड,
ढ।
त,
थ, द,
ध।
प, फ,
ब,भ।
य,
र, ल,
व।
श,
ष, स।
2)
अनुनासिक
व्यंजन:-
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अलिजिह्वा निचे लटककर नाक के छिद्र को खोल
देती हैं और वायू नाक तथा मुखविवर दोनों से बाहर निकलती हैं। ऐसी स्थिति में
अनुनासिक व्यंजनों का उच्चारण हो जाता हैं। अनुनासिक व्यंजन निम्नलिखित हैं।
जैसे
- ङ, ञ, म,
न, ण।
.............................
Thank u so much..... problem khtm
ReplyDeleteबहुत ही ज्ञानवर्धक एवं संतोषप्रद व्याख्या।
ReplyDeleteYeah bruh
DeleteNice information about our subject
ReplyDeleteThanks
Thanku so much........
ReplyDeleteबहुत अच्छी व्याख्या की है
ReplyDeleteअच्छी तरह व्याख्या की
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteThank you so much dear
ReplyDeleteThank you so much dear
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteThanks
ReplyDelete🙏🙏🙏💯%❤️❤️
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